बाद प्रलय के, श्रिष्टि से पहले, वह ईशतत्व, वह वेन विराट; परमात्मभाव, रित,ज्येष्ठ ब्रह्म; चेतन, जिसकी प्रतिमा न कोई। वह एक अकेला ही स्थित था, वह कौन, कहां था, किसे पता ॥
वह था, है, होता है, या नहीं , कब कौन कहां यह समझ सका। वह हिरण्यगर्भ या अपः मूल, वे देव,प्रक्रिति,रिषि,ग्यान सभी; हैं व्याप्त उसी में, फ़िर कैसे, वे भला जान पायें उसको ॥
हां सच है--
ReplyDeleteबाद प्रलय के, श्रिष्टि से पहले,
वह ईशतत्व, वह वेन विराट;
परमात्मभाव, रित,ज्येष्ठ ब्रह्म;
चेतन, जिसकी प्रतिमा न कोई।
वह एक अकेला ही स्थित था,
वह कौन, कहां था, किसे पता ॥
वह था, है, होता है, या नहीं ,
कब कौन कहां यह समझ सका।
वह हिरण्यगर्भ या अपः मूल,
वे देव,प्रक्रिति,रिषि,ग्यान सभी;
हैं व्याप्त उसी में, फ़िर कैसे,
वे भला जान पायें उसको ॥
-डा श्याम गुप्त के " श्रिष्टि" महाकाव्य से.